Tel: premsingh@becomeanias.in | Twitter: @janipremsingh

We're Coming Soon

We are working very hard on the new version of our site. It will bring a lot of new features. Stay tuned!


days

hours

minutes

seconds

Contact us

Sign up now to our newsletter and you'll be one of the first to know when the site is ready:

Copyright © Become an IAS | Powered by Prem Singh

महाद्वीपीय अमेरिका में एक साथ अत्यधिक शीत व उष्ण जलवायविक दशाएँ


                      दिसंबर, 2013 में महाद्वीपीय अमेरिका (Continental U.S) में जहाँ एक तरफ असामान्य ठंडा मौसम अथवा तापमान देखा गया वहीं अलास्का में रिकार्ड उष्णता देखी गयी। इन दो चरम सीमा वाले जलवायिक दशा के पीछे प्रमुख कारण उत्तरी हेमीस्फीयर के पोलर जेट स्ट्रीम में एक अस्वाभाविक मोड़/घुमाव का आना था जिसके कारण अत्यधिक ठंडी आर्कटिक हवाएँ (Frigid Arctic Air) दक्षिण की तरफ और गर्म हवाएँ उत्तर की तरफ जाने लगीं।

                      जेट स्ट्रीम पछुआ हवाओं (Westerly Wind) का तीव्र संचरण वाला बेल्ट है जो आर्कटिक से शीत वायु समूहों (Cold Air Masses) और निम्न अक्षांशों से गर्म हवाओं के अभिसरण (Convergence) द्वारा निर्मित होता है। इनका घुमावदार मार्ग से बहना (दिशाहीन घूमना) स्वाभाविक है, जिसे रास्बी धाराएँ (Rossby Waves) कहते हैं। यहाँ यह विचारणीय है कि दिसंबर, 2013 में उच्च दबाव के कटक (Ridge of High pressure) के अलास्का में स्वयं को ले जाने से ये धाराएँ इतनी मजबूत/परिवर्धित (Amplified) और विकृत कैसे हुई। जैसे ही उत्तर में गर्म हवाएँ आयी, रिकार्ड तापमान देखा गया। ऐसा माना गया है कि 1968 के बाद अलास्का में यह अब तक का सर्वाधिक गर्म दिसंबर माह था।

                      नासा के टेरा सेटेलाइट (Terra Satellite) पर ‘माडरेट रिजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर’ से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष लगाया गया है कि अमेरिकी महाद्वीप में दो विपरीत चरम स्थितियों वाली जलवायिक दशा देखने को मिली है। उल्लेखनीय है कि नासा की अर्थ आब्जरवेट्री ने इससे संबंधित तस्वीरें भी दी हैं। पैसफिक नार्थ वेस्ट क्षेत्रों में रिकार्ड स्तर पर ठंडे तापमान के प्रमाण दिसंबर, 2013 में मिले।
Souce of This Article

Many articles on this site is taken from other educational sites. For orginial Article Please Visit @ Drishti - The Vision


PREM SINGH
A Student of Indian Civil Services Examination.
Website: Become an IAS
Mobile: +919540694927
     

पोलर वोरटेक्स (Polar Vortex) : लक्षण व कारण


                      हाल ही में पोलर वोरटेक्स (Polar Vortex) तब चर्चा में आया जब इसके चलते अमेरिका के कई राज्यों में भीषण बर्फबारी के पश्चात् सामान्य तापमान के अत्यधिक नीचे चले जाने की घटना हुई। इस परिप्रेक्ष्य में पोलर वोरटेक्स जैसी भौगोलिक अथवा पर्यावरणीय घटना को समझना आवश्यक है।

                      पोलर वोरटेक्स सामान्यतया उत्तरी ध्रुव के आस-पास ऊपरी सतह वाली मजबूत वायु का प्रवाह (Circulation of Strong upper level winds) है जो घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा (Counter clockwise Direction) में बहती है। इसे ध्रुवीय निम्न दाब प्रणाली (Polar Low-pressure System) के रूप में जाना जाता है। ये हवाएँ उत्तरी हेमीस्फीयर के आर्कटिक क्षेत्रों में अवरुद्ध खतरनाक शीत वायु (Bitter Cold Air) लेती रहती है। कुछ अवसरों पर यह वोरटेक्स बिगड़ जाता है अथवा इसमें असंतुलन हो जाता है और दक्षिण से काफी दूर जाते हुए दक्षिणी भाग की तरफ शीत वायु को बहने की स्थितियाँ पैदा करता है।

                      उल्लेखनीय है कि उच्च सतह वाली वायु (Upper-level Winds) जो पोलर वोरटेक्स को बनाता है, की सघनता (Intensity) में समय-समय पर परिवर्तन आता है। जब उन हवाओं में महत्त्वपूर्ण रूप में कमी आती है तो यह वोरटेक्स के बिगड़ने (Distorted) की स्थितियाँ बनाता है जिसके परिणामस्वरूप एक जेट स्ट्रीम दक्षिणी अक्षांश (Southern Latitude) की तरफ तीव्र गति से शीत, सघन आर्कटिक हवाओं को अपने साथ बहाकर (Spilling Down) ले जाती है। इस ऑसिलेशन (Oscillation) को आर्कटिक ऑसिलेशन कहते हैं और यह प्रति वर्ष एक सकारात्मक चरण से नकारात्मक चरण की तरफ जा सकती है। यह ऑसिलेशन-जिसे नकारात्मक चरण के रूप में जाना जाता है जहाँ ध्रुवीय हवाएँ कमजोर होती हैं, तो यह पृथ्वी के एक या अधिक क्षेत्रों में प्रमुख शीत वायु प्रकोप (Major Cold air out breaks) की स्थितियाँ बनाने की तरफ सक्रिय हो जाती हैं। प्रमुख रूप से शीत वायु प्रकोप की घटना पोलर वोरटेक्स के चलते उत्तरी हेमीस्फीयर- उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया में घटित होती है। यह कई स्थानों पर कोल्ड स्नैप्स की तरफ ले जा सकता है, पर ऐसा सदैव होना आवश्यक नहीं है।

                      पोलर वोरटेक्स जनित शीत वायु प्रकोप एक अकेले चक्रवात टारनेडो व हरिकेन की तुलना में अधिक व्यापक व ज्यादा समय तक रहने वाला होता है। पोलर वोरटेक्स की स्थिति में तापमान में व्यापक रूप में फैली बूंदों के चलते बर्फीले तूफान (Winter Storms) को विकसित हुआ देखा जा सकता है। मार्च, 2013 में पोलर वोरटेक्स के चलते यूरोप के कई भागों में तापमान में अत्यधिक गिरावट आयी थी। कई स्थानों पर तो क्रिसमस छुट्टियों की तुलना में ईस्टर छुट्टियाँ अधिक ठंड भरी रहीं। उदाहरण के लिए यूनाइटेड किंगडम में पिछले 50 वर्षों का सर्वाधिक ठंडा मार्च (Coldest March) देखा गया।

                      इस प्रकार पोलर वोरटेक्स अत्यधिक बर्फबारी उपस्थित करने की स्थितियाँ उत्पन्न करता है जिससे सामान्य जनजीवन व्यस्त हो जाता है।
Souce of This Article

Many articles on this site is taken from other educational sites. For orginial Article Please Visit @ Drishti - The Vision


PREM SINGH
A Student of Indian Civil Services Examination.
Website: Become an IAS
Mobile: +919540694927
     

भू-स्खलन : लक्षण व कारण


                      भू-स्खलन एक ऐसी प्राकृतिक आपदा व परोक्ष रूप से मानव जनित आपदा है जिसे स्पष्ट रूप से परिभाषित करना और इसके व्यवहार को शब्दों में बांधना मुश्किल कार्य है। परंतु फिर भी पूर्व के अनुभवों, इसकी बारंबारता (Repitition) और इसके घटने को प्रभावित करने वाले कारकों जैसे- भू-विज्ञान, भू-आकृतिक कारक, ढ़ाल, भूमि उपयोग, वनस्पति आवरण और मानव क्रियाकलापों के आधार पर भारत को विभिन्न भूस्खलन क्षेत्रों में बाँटा गया है।

                      भू-स्खलन की स्थिति में चट्टान समूह खिसककर ढाल से नीचे गिरता है। सामान्यतः भू-स्खलन, भूकंप, ज्वालामुखी फटने; सुनामी और चक्रवात की तुलना में कोई बड़ी घटना नहीं है परंतु इसका प्राकृतिक पर्यावरण और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव  पड़ता है। अन्य आपदाओं के विपरीत, जो आकस्मिक, अननुमेय तथा वृहत स्तर पर दीर्घ एवं प्रादेशिक कारकों से नियंत्रित है, भू-स्खलन मुख्य रूप से स्थानीय कारणों से उत्पन्न होते हैं। इसलिए भू-स्खलन के बारे में आंकड़े एकत्र करना और इसकी संभावना का अनुमान लगाना न सिर्फ कठिन अपितु काफी खर्चीला काम है।

भू-स्खलन को निम्नांकित क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

1. अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्र- ज्यादा अस्थिर हिमालय की युवा पर्वतशृंखलाएँ, अंडमान और निकोबार, पश्चिमी घाट और नीलगिरि में अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, भूकंप प्रभावी क्षेत्र, और अत्यधिक मानव-क्रियाकलापों वाले क्षेत्र, जिसमें सड़क और बांँध निर्माण इत्यादि आते हैं, अत्यधिक भू-स्खलन सुभेद्यता क्षेत्रों में रखे जाते हैं।

2. अधिक सुभेद्यता क्षेत्र- अधिक भू-स्खलन सुभेद्यता क्षेत्रों में भी अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्रों से मिलती-जुलती परिस्थितियाँ हैं। दोनों में अंतर है, भू-स्खलन को नियंत्रण करने वाले कारकों के संयोजन, गहनता और बारंबारता का। हिमालय क्षेत्र के सारे राज्य और उत्तर-पूर्वी भाग (असम को छोड़कर) इस क्षेत्र में शामिल हैं।

3. मध्यम और कम सुभेद्यता क्षेत्र- पार हिमालय के कम वृष्टि वाले क्षेत्र लद्दाख और हिमालय प्रदेश में स्पीति, अरावली पहाड़ियों में कम वर्षा वाला क्षेत्र, पश्चिमी व पूर्वी घाट के व दक्कन पठार के वृष्टि छाया क्षेत्र ऐसे इलाके हैं, जहाँ कभी-कभी भू-स्खलन होता है। इसके अलावा झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, गोवा व केरल में खदानों और भूमि धंसने से भू-स्खलन होता रहता है।

4. अन्य क्षेत्र- भारत के अन्य क्षेत्र विशेषकर राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पं. बंगाल (दार्जिलिंग जिले को छोड़कर) असम (कार्वी अनलांग को छोड़कर) और दक्षिणी प्रांतों के तटीय क्षेत्र भू-स्खलन युक्त हैं।
Souce of This Article

Many articles on this site is taken from other educational sites. For orginial Article Please Visit @ Drishti - The Vision


PREM SINGH
A Student of Indian Civil Services Examination.
Website: Become an IAS
Mobile: +919540694927
     

सुनामीः लक्षण एवं विविध पक्ष



           सुनामी को एक प्राकृतिक आपदा के रूप में माना जाता है। भूकंप और ज्वालामुखी से महासागरीय धरातल में अचानक हलचल पैदा होती है और महासागरीय जल का अचानक विस्थापन होता है। परिणामस्वरूप ऊर्ध्वाधर ऊँची तरंगे पैदा होती हैं जिन्हें सुनामी (बंदरगाह लहरें) या भूकंपीय समुद्री लहरें कहा जाता है।

लक्षण :
           सामान्यतया प्रारंभ में सुनामी की स्थिति में सिर्फ एक ऊर्ध्वाधर तरंग ही पैदा होती है, परंतु कालांतर में जल तरंगों की एकशृंखला बन जाती है क्योंकि प्रारंभिक तरंग भी ऊँची शिखर और नीची गर्त के बीच अपना जल स्तर बनाये रखने की कोशिश करती है।

           जल तरंग की गति महासागर में जल की गहराई पर निर्भर करती है। इसकी गति उथले समुद्र में ज्यादा और गहरे समुद्र में कम होती है। परिणामस्वरूप महासगरों के अंदरूनी भाग इससे कम प्रभावित होते हैं। सुनामी की तरंगें तटीय क्षेत्रों में ज्यादा प्रभाव उत्पन्न करती हैं और काफी विनाशक रूप धारण करती हैं इसलिए समुद्र में जलपोत पर, सुनामी का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। समुद्र के आंतरिक गहरे भाग में तो सुनामी महसूस भी नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गहरे समुद्र में सूनामी की लहरों की लंबाई अधिक होती है और ऊँचाई कम होती है। इसलिए, समुद्र के इस भाग में सुनामी जलपोत को एक या दो मीटर तक ही ऊपर उठा सकती है और वह भी कई मिनट में।

           इसके विपरीत, जब सुनामी उथले समुद्र में प्रवेश करती हैं, इसकी तरंग की लंबाई कम होती चली जाती है,समय वही रहता है और तरंग की ऊँचाई बढ़ती जाती है। कई बार तो इसकी ऊँचाई 15 मीटर या इससे भी अधिक हो सकती है। जिससे तटीय क्षेत्र में भीषण विध्वंस होता है। तट पर पहुँचने पर सुनामी तरंगें बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा-निर्मुक्त करती हैं और समुद्र का जल तेजी से तटीय क्षेत्रों में घुस जाता है। सुनामी आम तौर पर प्रशांत महासागरीय तट पर जिसमें अलास्का, जापान; फिलीपाइन, दक्षिण-पूर्व एशिया के दूसरे द्वीप, इंडोनेशिया, मलेशिया तथा हिन्द महासागर में म्यामांर, श्रीलंका और भारत के तटीय भागों में आती है।
Souce of This Article

Many articles on this site is taken from other educational sites. For orginial Article Please Visit @ Drishti - The Vision


PREM SINGH
A Student of Indian Civil Services Examination.
Website: Become an IAS
Mobile: +919540694927
     

Do you know : क्या होती है राष्ट्रीय आय और प्रति व्‍यक्ति आय



राष्ट्रीय आय :
         राष्ट्रीय आय किसी देश की ओर से एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं की कीमत है। यहां यह गौर करना जरूरी है कि वस्तुओं और सेवाओं में अंतिम या सिर्फ वही वस्तुएं या सेवाएं ही शामिल हैं, जिनका उपयोग खपत में होता है न कि दोबारा उत्पादन में। राष्ट्रीय आय के आंकड़ों से हम यह जान सकते हैं कि अर्थव्यस्था में विकास हो रहा है या नहीं। अगर राष्ट्र की वास्तविक आय पिछले साल की तुलना में ज्यादा दिख रही है तो इसमें से महंगाई दर को घटा कर हम ग्रोथ की वास्‍तविक दर पता चला सकते हैं।

प्रति व्यक्ति आय :
         प्रति व्यक्ति आय वह पैमाना है जिसके जरिए यह पता चलता है कि किसी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति की कमाई कितनी है। इससे किसी शहर, क्षेत्र या देश में रहने वाले लोगों के रहन-सहन का स्तर और जीवन की गुणवत्ता का पता चलता है। देश की आमदनी में कुल आबादी को भाग देकर प्रति व्यक्ति आय निकाली जाती है।
Souce of This Article

Many articles on this site is taken from other educational sites. For orginial Article Please Visit @ money.bhaskar.com

PREM SINGH
A Student of Indian Civil Services Examination.
Website: Become an IAS
Mobile: +919540694927
     

Do you know : क्या है जीडीपी, जीएनपी और एसडीपी




                ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (जीडीपी) किसी भी देश की आर्थिक सेहत को मापने का पहला और जरूरी पैमाना है। जीडीपी किसी खास अवधि के दौरान कुल वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कीमत है। भारत में जीडीपी की गणना प्रत्येक तिमाही में की जाती है। जीडीपी का आंकड़ा अर्थव्यवस्था के प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में उत्पादन की वृद्धि दर पर आधारित होता है।
                भारत में कृषि, उद्योग व सेवा तीन प्रमुख घटक हैं, जिनमें उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत के आधार पर जीडीपी दर तय होती है। अगर हम कहते हैं कि देश की जीडीपी में सालाना तीन फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है तो यह समझा जाना चाहिए कि अर्थव्यवस्था तीन फीसदी की दर से बढ़ रही है, लेकिन अक्सर यह आंकड़ा महंगाई की दर को शामिल नहीं करता।

जीडीपी का हिसाब-किताब
                जीडीपी की गणना दो तरीके से की जाती है, क्योंकि उत्पादन की कीमतें महंगाई के साथ घटती बढ़ती रहती हैं। पहला पैमाना है कॉन्स्टेंट प्राइस, जिसके अंतर्गत जीडीपी की दर व उत्पादन का मूल्य एक आधार वर्ष में उत्पादन की कीमत पर तय होता है, जबकि दूसरा पैमाना करेंट प्राइस है, जिसमें उत्पादन वर्ष की महंगाई दर शामिल होती है।

कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी
                भारत का सांख्यिकी विभाग उत्पादन व सेवाओं के मूल्यांकन के लिए एक आधार वर्ष यानी बेस ईयर तय करता है। इस वर्ष के दौरान कीमतों को आधार बनाकर उत्पादन की कीमत और तुलनात्मक वृ‍द्धि दर तय की जाती है। यही कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी है। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि जीडीपी की दर को महंगाई की उठा पटक से अलग रखकर सतत ढंग से मापा जा सके। भारत के मौजूदा जीडीपी का मूल्य 2004-05 कीमतों पर आधारित है।

करेंट प्राइस
                जीडीपी के उत्पादन मूल्य में अगर महंगाई की दर को जोड़ दिया जाए तो हमें आर्थिक उत्पादन की मौजूदा कीमत हासिल हो जाती है। फॉर्मूला सीधा है, बस कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी को तात्कालिक महंगाई दर से जोड़ना होता है। उदाहरण के लिए अगर किसी वर्ष का कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी तीन फीसदी और महंगाई दर सात फीसदी है तो करेंट प्राइस जीडीपी दर दस फीसदी होगी।

कैसे आया पहली बार जीडीपी शब्द का प्रचलन?
                दोनों विश्व युद्धों के बीच व्यापक मंदी से जूझते हुए अमेरिकी नीति निर्माता इस बात को लेकर चिंतित थे कि उनकी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का आकार क्या है और वो अपने संसाधनों का कितना हिस्सा खर्च कर रहे हैं। इसी चिंता के मद्देनजर अर्थशास्त्री साइमन कुजनेत्स ने 1934 में अमरीकी कांग्रेस में प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट में पहली बार जीडीपी यानि सकल घरेलू उत्पाद का विचार दिया। 1944 में ब्रेटन वुडस सम्मेलन के बाद ब्रेटन वुडस ट्विन्स के रूप में मशहूर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के द्वारा अर्थव्यवस्था के आकार और इसकी सालाना बढ़ोत्तरी की दर पता लगाने के लिए दिए गए जीडीपी के विचार ने ख्याति पाई।

क्या है एसडीपी ? 
                एसडीपी मतलब स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट किसी राज्य की आर्थिक हालत बताता है। सूबे की आर्थिक सेहत को मापने का यह अहम पैमाना है। जीडीपी की तरह एसडीपी किसी राज्य में उत्पादित कुल वस्तु और सेवाओं की कीमत है। एसडीपी मुख्य तौर पर कृषि, उद्योग व सेवा तीन घटकों पर निर्भर करती है। एसडीपी के जरिए विकास दर का पता चलता है। इसमें महंगाई दर शामिल नहीं की जाती है।

क्या है डीडीपी ?
                जीडीपी औऱ एसडीपी की तरह जिले की आर्थिक हालत को जानने के लिए डीडीपी का इस्तेमाल होगा। डीडीपी मतलब डिस्ट्रिक्ट डोमेस्टिक प्रोडक्ट। कह सकते हैं यह जिले की आर्थिक हालत का अहम सूचक है। इसके जरिए किसी राज्य के जिलों की आर्थिक स्थिति का पता चलता है। डीडीपी किसी जिले की उत्पादित कुल वस्तु और सेवाओं की कीमत है।

क्या है जीएनपी ?
                ग्रॉस नेशनल प्रोडक्ट किसी देश की आर्थिक उपलब्धि को बताता है। जीएनपी और जीडीपी में बारीक अंतर है। जीएनपी किसी देश के नागरिकों द्वारा स्थानीय स्तर पर या विदेश में उत्पादित की गई कुल वस्तु और सेवाओं की कीमत को कहा जाता है, जबकि जीडीपी आंकड़े में संबंधित देश के नागरिकों ने विदेश में उत्पादन के जरिए कितनी इनकम हासिल की है, इस तथ्य को शामिल नहीं किया जाता है।
                जीएनपी डाटा हासिल करने के लिए हम कुल जीडीपी में उस कीमत को जोड़ देते हैं, जो देश में आयात की गई है और उस कीमत को घटा देते हैं, जो निर्यात की गई है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि जीएनपी के लिए हम जीडीपी के साथ उस कमाई को जोड़ देते हैं, जो स्थानीय नागरिकों ने विदेश में निवेश के जरिए कमाई है। इसके बाद उस कमाई को घटा देते हैं, जो विदेशी नागरिकों ने हमारे घरेलू बाजार से अर्जित की हो।




Souce of This Article

Many articles on this site is taken from other educational sites. For orginial Article Please Visit @ moneybhaskar.com

PREM SINGH
A Student of Indian Civil Services Examination.
Website: Become an IAS
Mobile: +919540694927
     

सरकार ने स्वीकारी 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें

पूर्व गवर्नर वाई.वी. रेड्डी


              केंद्र सरकार ने केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर वाई.वी. रेड्डी की अध्यक्षता में गठित 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें स्वीकार कर ली हैं। इससे केंद्र के वित्त प्रबंधन पर भारी दबाव पड़ने की संभावना है।

              वित्त आयोग एक संवैधानिक संस्था है और इसका गठन प्रत्येक पांच वर्ष बाद होता है. वित्त आयोग उन नीतियों पर सिफारिश देता है, जिनके आधार पर राज्यों और पंचायती राज संस्थाओं जैसे स्थानीय निकायों को अनुदान दिया जाता है. 

·           संविधान के भाग 12 (वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद) के अध्याय 1 के अंतर्गत अनुच्छेद 280 और 281 में केंद्रीय वित्त आयोग के बारे में उपबंध दिए गए हैं।
·           14वें वित्त आयोग के गठन की अधिसूचना 2 जनवरी 2013 को जारी की गई थी। इस आयोग का कार्यकाल 31 अक्टूबर 2014 तक था।
·           14वें वित्त आयोग को अप्रैल 2015 से 2020 तक केंद्र और राज्यों के बीच करों के बंटवारे पर सुझाव देने थे.

प्रमुख अनुशंसाएं
§    14वें वित्त आयोग ने केंद्र सरकार के कर संग्रह में से राज्यों को मिलने वाली हिस्सेदारी में 10 प्रतिशत की वृद्धिकी 
सिफारिश की थी। अब केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 32 से बढ़कर 42 प्रतिशत हो गई है।
§    बढ़ाई गई हिस्सेदारी के अनुसार, राज्यों को 2015-16 में 5.26 लाख करोड़ रुपये दिए जाएंगे। यह अभी लागू व्यवस्था
में चालू वित्त वर्ष के दौरान 3.48 लाख करोड़ रुपये है. 
§    केंद्र सरकार की ओर से योजना और अनुदान आधारित मदद के स्थान पर अब प्रदर्शन आधारित सहायता का प्रावधान 
किया जा रहा है। प्रदर्शन के आधार पर हस्तांतरण की नई व्यवस्था के परिणामस्वरूप 2015-16 में राज्यों को अतिरिक्त
1.78 लाख करोड़ रुपये प्राप्त होंगे.
§    कुल जनसंख्या, आय में विषमता, क्षेत्रफल और वन क्षेत्र के मानकों के आधार पर हिस्सेदारी का निर्धारण किया जाएगा.
§    पंचायतों और नगरपालिकाओं सहित सभी स्थानीय निकायों को 31 मार्च, 2020 को समाप्त होने वाले पांच वर्ष की 
अवधि के लिए कुल 2,87,436 करोड़ रुपये अनुदान का प्रावधान है।
§    ग्राम पंचायतों को 1,80,262 करोड़ रुपये मूल अनुदान के रूप में मिलेंगे जबकि 20,029 करोड़ रुपये सभी राज्यों को 
प्रदर्शन के आधार पर अनुदान के रूप में मिलेंगे। 
§    स्थानीय नगर निकायों को 69,715 करोड़ रुपये मूल अनुदान तथा 17,428 करोड़ रुपये प्रदर्शन के आधार पर अनुदान 
के रूप में मिलेंगे। 
§    ग्राम पंचायतों और नगर निकायों की मजबूती के लिए कुल कर का 42 प्रतिशत हिस्सा राज्यों को दिए जाने के अलावा 
अतिरिक्त राशि भी 11 राज्यों को आवंटित की गई है। लेकिन इसके बाद भी इन राज्यों में राजस्व घाटे की स्थिति रहेगी।
§    इन 11 राज्यों में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, केरल, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय
नागालैंड और त्रिपुरा शामिल हैं ।
§    राजस्व घाटे वाले इन 11 राज्यों को 2015-16 के दौरान 48,906 करोड़ रुपये की अनुदान सहायता दिए जाने की भी 
सिफारिश की गई है.
§    2015-20 के दौरान की अवधि में राज्यों के राजस्व और खर्चो का आकलन करने के बाद वित्त आयोग ने इन 11 
राज्यों के घाटे की क्षतिपूर्ति के लिए 1.94 लाख करोड़ रुपये की सहायता देने का सुझाव दिया।
§    उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु का केंद्रीय करों में हिस्सेदारी 
प्रतिशत पहले की तुलना में आंशिक रूप से कम हो गया है। 
§    आपदा प्रबंधन के लिए 61,219 करोड़ रुपये का राज्य आपदा राहत कोष बनाने की सिफारिश। इसमें केंद्र 55,097 
करोड़ रुपये और राज्य 6,122 करोड़ रुपये का योगदान करेंगे। 
§    राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2015-16 में 3.6 प्रतिशत और 2016-17 में 3 प्रतिशत के दायरे में रखने का सुझाव। 
§    स्वतंत्र राजकोषीय काउंसिल के गठन की सिफारिश जो राजकोषीय स्थिति की निगरानी करेगी, इसके लिए
राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम एक्ट) में बदलाव की सिफारिश.
§    एफआरबीएम अधिनियम में बदलाव का सुझाव ताकि ऋण की अधिकतम सीमा निर्धारित की जा सके.
§    अनुच्छेद 292 के तहत केंद्र की उधारी सीमित रहे और राज्यों के लिए अनुच्छेद 293 पर अमल किया जाए.
§    राज्यों को अतिरिक्त उधारी की अनुमति मिले. 
§    ऋण-जीएसडीपी, ब्याज-राजस्व अनुपात तय होगा. 
§    सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में विनिवेश से मिलने वाले धन का एक हिस्सा राज्यों को भी दिया जाना चाहिए।
§    सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में विनिवेश हर वर्ष बाजार परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और पैसे की जरूरत को 
ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
§    सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का उच्च प्राथमिकता, प्राथमिकता, कम प्राथमिकता और बिना प्राथमिकता के आधार पर
 वर्गीकरण करने की सिफारिश.
§    बीमार गैर-सूचीबद्ध सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी की पारदर्शी नीलामी हो. 
§    केंद्र से राज्यों को धन दिए जाने की व्यवस्था में भारी फेरबदल की आवश्यकता। राज्यों में उन क्षेत्रों की पहचान की जानी
चाहिए जहां केंद्र से सीधे धन आवंटित किया जा सके।
§    अगले वर्ष से लागू होने वाले जीएसटी के पहले तीन वर्षों तक राज्यों को 100 प्रतिशत क्षतिपूर्ति सरकार की तरफ से दी
जाएगी। चौथे वर्ष में 75 प्रतिशत और पांचवें वर्ष में 50 प्रतिशत क्षतिपूर्ति दी जाएगी।
§    राज्यों को नुकसान की भरपाई के लिए स्वतंत्र कोष बनाने की भी सिफारिश।
§    राज्यों को धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बनना होगा; खर्चों के फैसले के लिए राज्यों को ज्यादा अधिकार मिलें।  
§    हाईवे टोल निर्धारित करने और सेवा की गुणवत्ता की निगरानी के लिए स्वतंत्र नियामक बनाया जाए.
§    घरेलू, सिंचाई तथा अन्य उपयोग के लिए पानी की कीमत तय करने के लिए जल नियामक प्राधिकरण बनाया जाए.
§    बिजली-पानी का वितरण पूरी तरह मीटर के आधार पर किया जाए.
§    बिजली अधिनियम में आवश्यक बदलाव किए जाएं.
§    30 योजनाएं राज्यों को सौंपने की सिफारिश.

2010 से 2015 की अवधि वाले 13वें वित्त आयोग के अध्यक्ष पूर्व वित्त सचिव विजय केलकर थे.

Souce of This Article

Many articles on this site is taken from other educational sites. For orginial Article Please Visit @ Drishti - The Vision


PREM SINGH
A Student of Indian Civil Services Examination.
Website: Become an IAS
Mobile: +919540694927
     

Movies Post

Powered by Blogger.

Sports

Music

Business

Games

Video

728x90 AdSpace

Travel

Search This Blog

Fashion

Design

Movies

Contact Form

Name

Email *

Message *

SoftsYard Followers

Fashion

Sports

Movies

News

Latest News

Slider

Recent Post

Games

Popular Posts

Follow Us

Find Us On Facebook

Ads

Random Post

Links

Video

Technology

Populars

Author Name