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पूर्व गवर्नर वाई.वी. रेड्डी |
केंद्र सरकार ने
केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक के पूर्व
गवर्नर वाई.वी. रेड्डी की अध्यक्षता में गठित 14वें वित्त
आयोग की सिफारिशें स्वीकार कर ली हैं। इससे केंद्र के वित्त प्रबंधन पर भारी दबाव
पड़ने की संभावना है।
वित्त आयोग एक
संवैधानिक संस्था है और इसका गठन प्रत्येक पांच वर्ष बाद होता है. वित्त आयोग उन
नीतियों पर सिफारिश देता है, जिनके आधार पर राज्यों और
पंचायती राज संस्थाओं जैसे स्थानीय निकायों को अनुदान दिया जाता है.
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संविधान के भाग 12 (वित्त, संपत्ति, संविदाएं और
वाद) के अध्याय 1 के अंतर्गत अनुच्छेद 280 और 281 में केंद्रीय वित्त आयोग के बारे में उपबंध
दिए गए हैं।
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14वें वित्त आयोग के गठन की अधिसूचना 2 जनवरी 2013 को जारी की गई थी। इस आयोग का कार्यकाल 31
अक्टूबर 2014 तक था।
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14वें वित्त आयोग को अप्रैल 2015 से 2020 तक केंद्र और राज्यों के बीच करों के
बंटवारे पर सुझाव देने थे.
प्रमुख
अनुशंसाएं
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14वें वित्त आयोग ने केंद्र सरकार के कर संग्रह में
से राज्यों को मिलने वाली हिस्सेदारी में 10 प्रतिशत की
वृद्धिकी
सिफारिश की थी। अब केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 32 से बढ़कर 42 प्रतिशत हो गई है।
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बढ़ाई गई हिस्सेदारी के अनुसार, राज्यों को 2015-16 में 5.26 लाख
करोड़ रुपये दिए जाएंगे। यह अभी लागू व्यवस्था
में चालू वित्त वर्ष के दौरान 3.48
लाख करोड़ रुपये है.
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केंद्र सरकार की ओर से योजना और
अनुदान आधारित मदद के स्थान पर अब प्रदर्शन आधारित सहायता का प्रावधान
किया जा रहा
है। प्रदर्शन
के आधार पर हस्तांतरण की नई व्यवस्था के परिणामस्वरूप 2015-16
में राज्यों को अतिरिक्त
1.78 लाख करोड़ रुपये
प्राप्त होंगे.
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कुल जनसंख्या, आय में विषमता, क्षेत्रफल और वन क्षेत्र के मानकों
के आधार पर हिस्सेदारी का निर्धारण किया जाएगा.
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पंचायतों और नगरपालिकाओं सहित
सभी स्थानीय निकायों को 31 मार्च, 2020 को समाप्त होने
वाले पांच वर्ष की
अवधि के लिए कुल 2,87,436 करोड़ रुपये
अनुदान का प्रावधान है।
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ग्राम पंचायतों को 1,80,262
करोड़ रुपये मूल अनुदान के रूप में मिलेंगे जबकि 20,029 करोड़ रुपये सभी राज्यों को
प्रदर्शन के आधार पर अनुदान के रूप में मिलेंगे।
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स्थानीय नगर निकायों को 69,715
करोड़ रुपये मूल अनुदान तथा 17,428 करोड़ रुपये
प्रदर्शन के आधार पर अनुदान
के रूप में मिलेंगे।
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ग्राम पंचायतों और नगर निकायों
की मजबूती के लिए कुल कर का 42 प्रतिशत हिस्सा राज्यों को
दिए जाने के अलावा
अतिरिक्त राशि भी 11 राज्यों को आवंटित की
गई है। लेकिन इसके बाद भी इन राज्यों में राजस्व घाटे की स्थिति रहेगी।
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इन 11 राज्यों में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, असम, पश्चिम
बंगाल, केरल, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय,
नागालैंड और
त्रिपुरा शामिल हैं ।
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राजस्व घाटे वाले इन 11 राज्यों को 2015-16 के दौरान 48,906 करोड़ रुपये की अनुदान सहायता दिए जाने की भी
सिफारिश की गई है.
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2015-20 के दौरान की अवधि में राज्यों के राजस्व और
खर्चो का आकलन करने के बाद वित्त आयोग ने इन 11
राज्यों के
घाटे की क्षतिपूर्ति के लिए 1.94 लाख करोड़ रुपये की सहायता देने का सुझाव दिया।
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उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, हिमाचल
प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु
का केंद्रीय करों में हिस्सेदारी
प्रतिशत पहले की तुलना में आंशिक रूप से कम हो
गया है।
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आपदा प्रबंधन के लिए 61,219
करोड़ रुपये का राज्य आपदा राहत कोष बनाने की सिफारिश। इसमें
केंद्र 55,097
करोड़ रुपये और राज्य 6,122 करोड़ रुपये का योगदान करेंगे।
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राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2015-16
में 3.6 प्रतिशत और 2016-17 में 3 प्रतिशत के दायरे में रखने का सुझाव।
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स्वतंत्र राजकोषीय काउंसिल के गठन की सिफारिश जो राजकोषीय
स्थिति की निगरानी करेगी, इसके लिए
राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन
अधिनियम (एफआरबीएम एक्ट) में बदलाव की सिफारिश.
§
एफआरबीएम अधिनियम में बदलाव का
सुझाव ताकि ऋण
की अधिकतम सीमा निर्धारित
की जा सके.
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अनुच्छेद 292 के तहत केंद्र की उधारी सीमित रहे और राज्यों के लिए अनुच्छेद 293 पर अमल किया जाए.
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राज्यों को अतिरिक्त उधारी की
अनुमति मिले.
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ऋण-जीएसडीपी, ब्याज-राजस्व अनुपात तय होगा.
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सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों
में विनिवेश से मिलने वाले धन का एक हिस्सा राज्यों को भी दिया जाना चाहिए।
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सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों
में विनिवेश हर वर्ष बाजार परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और पैसे की जरूरत
को
ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
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सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों
का उच्च प्राथमिकता, प्राथमिकता, कम प्राथमिकता
और बिना प्राथमिकता के आधार पर
वर्गीकरण करने की सिफारिश.
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बीमार गैर-सूचीबद्ध सार्वजनिक
क्षेत्र की कंपनी की पारदर्शी नीलामी हो.
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केंद्र से राज्यों को धन दिए
जाने की व्यवस्था में भारी फेरबदल की आवश्यकता। राज्यों में उन क्षेत्रों की पहचान
की जानी
चाहिए जहां केंद्र से सीधे धन आवंटित किया जा सके।
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अगले वर्ष से लागू होने वाले जीएसटी के पहले तीन वर्षों तक राज्यों
को 100 प्रतिशत क्षतिपूर्ति सरकार की तरफ से दी
जाएगी।
चौथे वर्ष में 75 प्रतिशत और पांचवें वर्ष में 50 प्रतिशत क्षतिपूर्ति दी जाएगी।
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राज्यों को नुकसान की भरपाई के
लिए स्वतंत्र
कोष बनाने
की भी सिफारिश।
§
राज्यों को धीरे-धीरे
आत्मनिर्भर बनना होगा; खर्चों के फैसले के लिए राज्यों को ज्यादा अधिकार
मिलें।
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हाईवे टोल निर्धारित करने और सेवा की
गुणवत्ता की निगरानी के लिए स्वतंत्र
नियामक बनाया
जाए.
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घरेलू, सिंचाई तथा अन्य उपयोग के लिए पानी की कीमत तय करने के लिए जल नियामक प्राधिकरण बनाया जाए.
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बिजली-पानी का वितरण पूरी तरह
मीटर के आधार पर किया जाए.
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बिजली अधिनियम में आवश्यक बदलाव किए जाएं.
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30 योजनाएं राज्यों को सौंपने की सिफारिश.
2010 से 2015 की अवधि वाले 13वें
वित्त आयोग के अध्यक्ष पूर्व वित्त सचिव विजय केलकर थे.