ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (जीडीपी) किसी भी देश की आर्थिक
सेहत को मापने का पहला और जरूरी पैमाना है। जीडीपी किसी खास अवधि के दौरान कुल
वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कीमत है। भारत में जीडीपी की गणना प्रत्येक तिमाही
में की जाती है। जीडीपी का आंकड़ा अर्थव्यवस्था के प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में
उत्पादन की वृद्धि दर पर आधारित होता है।
भारत में कृषि, उद्योग व सेवा तीन प्रमुख घटक हैं, जिनमें उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत के आधार पर जीडीपी दर तय होती है। अगर हम कहते हैं कि देश की जीडीपी में सालाना तीन फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है तो यह समझा जाना चाहिए कि अर्थव्यवस्था तीन फीसदी की दर से बढ़ रही है, लेकिन अक्सर यह आंकड़ा महंगाई की दर को शामिल नहीं करता।
जीडीपी का हिसाब-किताब
जीडीपी की गणना दो तरीके से की जाती है, क्योंकि उत्पादन की कीमतें महंगाई के साथ घटती बढ़ती रहती हैं। पहला पैमाना है कॉन्स्टेंट प्राइस, जिसके अंतर्गत जीडीपी की दर व उत्पादन का मूल्य एक आधार वर्ष में उत्पादन की कीमत पर तय होता है, जबकि दूसरा पैमाना करेंट प्राइस है, जिसमें उत्पादन वर्ष की महंगाई दर शामिल होती है।
भारत में कृषि, उद्योग व सेवा तीन प्रमुख घटक हैं, जिनमें उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत के आधार पर जीडीपी दर तय होती है। अगर हम कहते हैं कि देश की जीडीपी में सालाना तीन फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है तो यह समझा जाना चाहिए कि अर्थव्यवस्था तीन फीसदी की दर से बढ़ रही है, लेकिन अक्सर यह आंकड़ा महंगाई की दर को शामिल नहीं करता।
जीडीपी का हिसाब-किताब
जीडीपी की गणना दो तरीके से की जाती है, क्योंकि उत्पादन की कीमतें महंगाई के साथ घटती बढ़ती रहती हैं। पहला पैमाना है कॉन्स्टेंट प्राइस, जिसके अंतर्गत जीडीपी की दर व उत्पादन का मूल्य एक आधार वर्ष में उत्पादन की कीमत पर तय होता है, जबकि दूसरा पैमाना करेंट प्राइस है, जिसमें उत्पादन वर्ष की महंगाई दर शामिल होती है।
कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी
भारत का सांख्यिकी विभाग उत्पादन व सेवाओं के मूल्यांकन के लिए एक आधार वर्ष यानी बेस ईयर तय करता है। इस वर्ष के दौरान कीमतों को आधार बनाकर उत्पादन की कीमत और तुलनात्मक वृद्धि दर तय की जाती है। यही कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी है। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि जीडीपी की दर को महंगाई की उठा पटक से अलग रखकर सतत ढंग से मापा जा सके। भारत के मौजूदा जीडीपी का मूल्य 2004-05 कीमतों पर आधारित है।
करेंट प्राइस
जीडीपी के उत्पादन मूल्य में अगर महंगाई की दर को जोड़ दिया जाए तो हमें आर्थिक उत्पादन की मौजूदा कीमत हासिल हो जाती है। फॉर्मूला सीधा है, बस कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी को तात्कालिक महंगाई दर से जोड़ना होता है। उदाहरण के लिए अगर किसी वर्ष का कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी तीन फीसदी और महंगाई दर सात फीसदी है तो करेंट प्राइस जीडीपी दर दस फीसदी होगी।
भारत का सांख्यिकी विभाग उत्पादन व सेवाओं के मूल्यांकन के लिए एक आधार वर्ष यानी बेस ईयर तय करता है। इस वर्ष के दौरान कीमतों को आधार बनाकर उत्पादन की कीमत और तुलनात्मक वृद्धि दर तय की जाती है। यही कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी है। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि जीडीपी की दर को महंगाई की उठा पटक से अलग रखकर सतत ढंग से मापा जा सके। भारत के मौजूदा जीडीपी का मूल्य 2004-05 कीमतों पर आधारित है।
करेंट प्राइस
जीडीपी के उत्पादन मूल्य में अगर महंगाई की दर को जोड़ दिया जाए तो हमें आर्थिक उत्पादन की मौजूदा कीमत हासिल हो जाती है। फॉर्मूला सीधा है, बस कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी को तात्कालिक महंगाई दर से जोड़ना होता है। उदाहरण के लिए अगर किसी वर्ष का कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी तीन फीसदी और महंगाई दर सात फीसदी है तो करेंट प्राइस जीडीपी दर दस फीसदी होगी।
कैसे आया पहली बार जीडीपी शब्द का प्रचलन?
दोनों विश्व युद्धों के बीच व्यापक मंदी से जूझते हुए अमेरिकी नीति निर्माता इस बात को लेकर चिंतित थे कि उनकी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का आकार क्या है और वो अपने संसाधनों का कितना हिस्सा खर्च कर रहे हैं। इसी चिंता के मद्देनजर अर्थशास्त्री साइमन कुजनेत्स ने 1934 में अमरीकी कांग्रेस में प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट में पहली बार जीडीपी यानि सकल घरेलू उत्पाद का विचार दिया। 1944 में ब्रेटन वुडस सम्मेलन के बाद ब्रेटन वुडस ट्विन्स के रूप में मशहूर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के द्वारा अर्थव्यवस्था के आकार और इसकी सालाना बढ़ोत्तरी की दर पता लगाने के लिए दिए गए जीडीपी के विचार ने ख्याति पाई।
दोनों विश्व युद्धों के बीच व्यापक मंदी से जूझते हुए अमेरिकी नीति निर्माता इस बात को लेकर चिंतित थे कि उनकी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का आकार क्या है और वो अपने संसाधनों का कितना हिस्सा खर्च कर रहे हैं। इसी चिंता के मद्देनजर अर्थशास्त्री साइमन कुजनेत्स ने 1934 में अमरीकी कांग्रेस में प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट में पहली बार जीडीपी यानि सकल घरेलू उत्पाद का विचार दिया। 1944 में ब्रेटन वुडस सम्मेलन के बाद ब्रेटन वुडस ट्विन्स के रूप में मशहूर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के द्वारा अर्थव्यवस्था के आकार और इसकी सालाना बढ़ोत्तरी की दर पता लगाने के लिए दिए गए जीडीपी के विचार ने ख्याति पाई।
क्या है एसडीपी ?
एसडीपी मतलब स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट किसी राज्य की आर्थिक हालत बताता है। सूबे की आर्थिक सेहत को मापने का यह अहम पैमाना है। जीडीपी की तरह एसडीपी किसी राज्य में उत्पादित कुल वस्तु और सेवाओं की कीमत है। एसडीपी मुख्य तौर पर कृषि, उद्योग व सेवा तीन घटकों पर निर्भर करती है। एसडीपी के जरिए विकास दर का पता चलता है। इसमें महंगाई दर शामिल नहीं की जाती है।
क्या है डीडीपी ?
जीडीपी औऱ एसडीपी की तरह जिले की आर्थिक हालत को जानने के लिए डीडीपी का इस्तेमाल होगा। डीडीपी मतलब डिस्ट्रिक्ट डोमेस्टिक प्रोडक्ट। कह सकते हैं यह जिले की आर्थिक हालत का अहम सूचक है। इसके जरिए किसी राज्य के जिलों की आर्थिक स्थिति का पता चलता है। डीडीपी किसी जिले की उत्पादित कुल वस्तु और सेवाओं की कीमत है।
एसडीपी मतलब स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट किसी राज्य की आर्थिक हालत बताता है। सूबे की आर्थिक सेहत को मापने का यह अहम पैमाना है। जीडीपी की तरह एसडीपी किसी राज्य में उत्पादित कुल वस्तु और सेवाओं की कीमत है। एसडीपी मुख्य तौर पर कृषि, उद्योग व सेवा तीन घटकों पर निर्भर करती है। एसडीपी के जरिए विकास दर का पता चलता है। इसमें महंगाई दर शामिल नहीं की जाती है।
क्या है डीडीपी ?
जीडीपी औऱ एसडीपी की तरह जिले की आर्थिक हालत को जानने के लिए डीडीपी का इस्तेमाल होगा। डीडीपी मतलब डिस्ट्रिक्ट डोमेस्टिक प्रोडक्ट। कह सकते हैं यह जिले की आर्थिक हालत का अहम सूचक है। इसके जरिए किसी राज्य के जिलों की आर्थिक स्थिति का पता चलता है। डीडीपी किसी जिले की उत्पादित कुल वस्तु और सेवाओं की कीमत है।
क्या है जीएनपी ?
ग्रॉस नेशनल प्रोडक्ट किसी देश की आर्थिक उपलब्धि को बताता है। जीएनपी और जीडीपी में बारीक अंतर है। जीएनपी किसी देश के नागरिकों द्वारा स्थानीय स्तर पर या विदेश में उत्पादित की गई कुल वस्तु और सेवाओं की कीमत को कहा जाता है, जबकि जीडीपी आंकड़े में संबंधित देश के नागरिकों ने विदेश में उत्पादन के जरिए कितनी इनकम हासिल की है, इस तथ्य को शामिल नहीं किया जाता है।
जीएनपी डाटा हासिल करने के लिए हम कुल जीडीपी में उस कीमत को जोड़ देते हैं, जो देश में आयात की गई है और उस कीमत को घटा देते हैं, जो निर्यात की गई है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि जीएनपी के लिए हम जीडीपी के साथ उस कमाई को जोड़ देते हैं, जो स्थानीय नागरिकों ने विदेश में निवेश के जरिए कमाई है। इसके बाद उस कमाई को घटा देते हैं, जो विदेशी नागरिकों ने हमारे घरेलू बाजार से अर्जित की हो।
ग्रॉस नेशनल प्रोडक्ट किसी देश की आर्थिक उपलब्धि को बताता है। जीएनपी और जीडीपी में बारीक अंतर है। जीएनपी किसी देश के नागरिकों द्वारा स्थानीय स्तर पर या विदेश में उत्पादित की गई कुल वस्तु और सेवाओं की कीमत को कहा जाता है, जबकि जीडीपी आंकड़े में संबंधित देश के नागरिकों ने विदेश में उत्पादन के जरिए कितनी इनकम हासिल की है, इस तथ्य को शामिल नहीं किया जाता है।
जीएनपी डाटा हासिल करने के लिए हम कुल जीडीपी में उस कीमत को जोड़ देते हैं, जो देश में आयात की गई है और उस कीमत को घटा देते हैं, जो निर्यात की गई है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि जीएनपी के लिए हम जीडीपी के साथ उस कमाई को जोड़ देते हैं, जो स्थानीय नागरिकों ने विदेश में निवेश के जरिए कमाई है। इसके बाद उस कमाई को घटा देते हैं, जो विदेशी नागरिकों ने हमारे घरेलू बाजार से अर्जित की हो।
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